G-7 संगठन क्या है और अमेरिका इसका विस्तार क्यों करना चाहता है?
G-7 की स्थापना सन 1975 में 6 विकसित देशों
(फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका)
ने की थी. अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इसका विस्तार करके G-10 या
G-11 बनाना चाहते हैं जिसमें भारत भी शामिल होगा.
G-7 संगठन क्या है और अमेरिका इसका विस्तार क्यों करना चाहता है? G-7 - 1975 |
G-7 क्या है? (What is G-7)
G-7 या द ग्रुप ऑफ़ सेवन (G7) एक अंतरराष्ट्रीय अंतर सरकारी आर्थिक संगठन है जिसमें IMF द्वारा बतायी गयीं दुनिया की सात सबसे बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं.
The group of seven को शोर्ट में G-7 कहा जाता है लेकिन इसकी स्थापना 1975 में सिर्फ 6 देशों; फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका ने की थी.
G-6 में 1976 में कनाडा के शामिल होने के बाद यह G–7 बना और फिर 1998 में रूस के शामिल होने पर G– 8 बन गया. लेकिन 2014 में क्रीमिया विवाद के बाद रूस को इससे बाहर कर दिया गया था (Why was Russia kicked off G-8). इस प्रकार यह फिर से G–7 रह गया है.
वर्तमान में G-7 के सदस्य इस प्रकार हैं (G-7 Members at Present):-
1. संयुक्त राज्य अमेरिका
2. यूनाइटेड किंग्डम,
3. फ्रांस
4. जर्मनी
5. जापान
6. इटली
7. कनाडा
भारत vs चीन: जल, थल और वायुसेना की ताकत का तुलनात्मक अध्ययन
अमेरिका G-7 का विस्तार क्यों चाहता है? (Why USA wants to expand G-7)
46वें जी-7 शिखर सम्मेलन का आयोजन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 10 जून से 12 जून तक आयोजन होना था लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने वर्तमान के G–7 को आउटडेटिड कहकर इस शिखर सम्मेलन का आयोजन सितंबर तक टाल दिया है. उन्होंने कहा कि यह संगठन ठीक तरीके से विश्व के सभी देशों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है अर्थात इसमें और 4 देशों; भारत, ऑस्ट्रेलिया, रूस और दक्षिण कोरिया को शामिल किया जाना चाहिए.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके अन्य सांसदों का मानना है कि यदि दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना है तो फिर भारत को इस क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति बनाना होगा.
रिपब्लिकन सीनेटर जॉन कॉर्निन का मानना है कि यदि चीन की आधिपत्य वाली नीति को कमजोर करना है तो भारत को धनवान और शक्तिशाली बनाना ही होगा.
भारत के G-7 में शामिल होने के फायदे (Benefits to India from G-7 Expansion)
यदि भारत G-7 का सदस्य बन जाता है तो भारत के लिए इंटरनेशनल ट्रेड के कई रस्ते खुल जायेंगे.ब्रिटेन की अगुआई में एक और संगठन D-10 को बनाने की बात चल रही है. यह एक ऐसा संगठन है जो कि 5G टेक्नोलॉजी के विस्तार पर काम करेगा और इसमें चीन को शामिल नही किया जायेगा.
इसके अलावा इस ग्रुप में इस बार पर भी सहमति बनने की संभावना है कि दुनिया में ज्यादातर चिप, मोबाइल और फार्मास्यूटिकल सामान का निर्माण इन्हीं देशों देशों तक सीमित रखा जाये जिससे चीन को आर्थिक नुकसान पहुँचाया जा सके.
वर्तमान में भारत के प्रधानमन्त्री के पास ऐसे कम ही मौके आते हैं जब वह अमेरिकी राष्ट्रपति सहित विश्व के अन्य नेताओं से मुलाकात कर पाते हैं. अगर G-7 का विस्तार हो जाता है तो भारत के अमेरिका से बहुत ही प्रगाढ़ सम्बन्ध बन जायेंगे जिससे चीन को भारत विरोधी काम करने के पहले एक बार सोचना जरूर पड़ेगा.
इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि भारत G-7 में शामिल होता है तो बहुत अधिक फायदा भारत को हो सकता है.
G-7 या द ग्रुप ऑफ़ सेवन (G7) एक अंतरराष्ट्रीय अंतर सरकारी आर्थिक संगठन है जिसमें IMF द्वारा बतायी गयीं दुनिया की सात सबसे बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं.
The group of seven को शोर्ट में G-7 कहा जाता है लेकिन इसकी स्थापना 1975 में सिर्फ 6 देशों; फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका ने की थी.
G-6 में 1976 में कनाडा के शामिल होने के बाद यह G–7 बना और फिर 1998 में रूस के शामिल होने पर G– 8 बन गया. लेकिन 2014 में क्रीमिया विवाद के बाद रूस को इससे बाहर कर दिया गया था (Why was Russia kicked off G-8). इस प्रकार यह फिर से G–7 रह गया है.
वर्तमान में G-7 के सदस्य इस प्रकार हैं (G-7 Members at Present):-
1. संयुक्त राज्य अमेरिका
2. यूनाइटेड किंग्डम,
3. फ्रांस
4. जर्मनी
5. जापान
6. इटली
7. कनाडा
भारत vs चीन: जल, थल और वायुसेना की ताकत का तुलनात्मक अध्ययन
अमेरिका G-7 का विस्तार क्यों चाहता है? (Why USA wants to expand G-7)
46वें जी-7 शिखर सम्मेलन का आयोजन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 10 जून से 12 जून तक आयोजन होना था लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने वर्तमान के G–7 को आउटडेटिड कहकर इस शिखर सम्मेलन का आयोजन सितंबर तक टाल दिया है. उन्होंने कहा कि यह संगठन ठीक तरीके से विश्व के सभी देशों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है अर्थात इसमें और 4 देशों; भारत, ऑस्ट्रेलिया, रूस और दक्षिण कोरिया को शामिल किया जाना चाहिए.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके अन्य सांसदों का मानना है कि यदि दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना है तो फिर भारत को इस क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति बनाना होगा.
रिपब्लिकन सीनेटर जॉन कॉर्निन का मानना है कि यदि चीन की आधिपत्य वाली नीति को कमजोर करना है तो भारत को धनवान और शक्तिशाली बनाना ही होगा.
यदि भारत G-7 का सदस्य बन जाता है तो भारत के लिए इंटरनेशनल ट्रेड के कई रस्ते खुल जायेंगे.ब्रिटेन की अगुआई में एक और संगठन D-10 को बनाने की बात चल रही है. यह एक ऐसा संगठन है जो कि 5G टेक्नोलॉजी के विस्तार पर काम करेगा और इसमें चीन को शामिल नही किया जायेगा.
इसके अलावा इस ग्रुप में इस बार पर भी सहमति बनने की संभावना है कि दुनिया में ज्यादातर चिप, मोबाइल और फार्मास्यूटिकल सामान का निर्माण इन्हीं देशों देशों तक सीमित रखा जाये जिससे चीन को आर्थिक नुकसान पहुँचाया जा सके.
वर्तमान में भारत के प्रधानमन्त्री के पास ऐसे कम ही मौके आते हैं जब वह अमेरिकी राष्ट्रपति सहित विश्व के अन्य नेताओं से मुलाकात कर पाते हैं. अगर G-7 का विस्तार हो जाता है तो भारत के अमेरिका से बहुत ही प्रगाढ़ सम्बन्ध बन जायेंगे जिससे चीन को भारत विरोधी काम करने के पहले एक बार सोचना जरूर पड़ेगा.
इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि भारत G-7 में शामिल होता है तो बहुत अधिक फायदा भारत को हो सकता है.